अब प्रश्न उठता है कि यह मर्म क्या है? कौन सा मर्म केवट जानता है? जिस राम को हनुमान जी प्रथम मुलाकात में अनजान बनकर प्रश्न करते है -
" को तुम श्यामल गौर शरीरा। क्षत्रिय रूप फिरहि बन बीरा।।
कठिनभूमि कोमल पद गामी। कवन हेतु बन विचरहु स्वामी।।
की तुम तीन देव् मह कोउ।नर नारायण की तुम्ह दोउ।। और भगवान राम अपना परिचय देते है। ये एक अत्यंत सुंदर प्रसंग है। प्रश्न ये है कि श्री हनुमान जी भी अंत मे स्पष्टीकरण देते है कि
तव माया बस फिरहु भुलाना। ताते मैं प्रभु नही पहिचाना।।
तो क्या केवट पर माया का प्रभाव नही था? भौतिक शरीर तो छोड़ो, वो तो सीधे मर्म को जानने की बात करता है।
भगवान वाल्मीकि से जब राम जी मिलते है तो वाल्मीकि जी उनकी महिमा का बखान करते हुए कहते है
राम सरूप तुम्हार बचन अगोचर बुद्धि पर।
अबिगत अकथ अपार नेति नेति नित निगम कह।।
जगु पेखन तुम्ह देख निहारे। बिधि हरि संभु नचावनिहारे।।
तेउ न जानहि मरम तुम्हारा।और तुमहि को जान निहारा।।
सोइ जानहि जेहि देइ जनाई। जानत तुम्हहि तुमहि होइ जाइ।।
वाल्मीकि भगवान स्पष्ट कहते है कि ब्रह्मविष्णु और शंकर भी आप के मर्म को नही जानते , तब और कौन आप को जान सकता है? लेकिन वही निषादराज स्पष्ट कहता है कि तुम्हार मरम मैं जाना।। कुछ तो विशेष है केवट में। अन्यथा इस तरह डंके की चोट पर कहने वाला और कोईभी पात्र राम चरित मानस में नही है।।
मानस पातरंजली में केवट के बारे में लिखा है कि यह भगवान वशिष्ठ का पुत्र वामदेव थे। और जब दसरथ जी से श्रवण कुमार की मृत्यु हो गई और श्रवण के मातापिता ने भी तड़प के जान दे दिया तो दसरथ जो को तीन ब्राह्मणो की हत्या का पाप लगा। दसरथ जी दुखी मन से गुरु वशिष्ठ के आश्रम पहुंचे। और व्रह्म हत्या ने मुक्ति पाने के लिए निवेदन किया। वशिष्ठ जी आश्रम में नही थे। उनकी अनुपस्थिति में उनके पुत्र बामदेव ने उन्हें 3 बार राम राम राम कह कर दोष निवारण करवा दिया। जब वशिष्ठ जी का आगमन हुआ और उन्हें यह बात पता चली कि वामदेव ने तीन बार राम कह कर दसरथ जी को दोष मुक्त कर दिया है तो उन्हें बहुत क्रोध आया अपने पुत्र पर और कहा अरे पुत्र तूने राम नाम की महिमा पर विस्वास नही है।
"जासु नाम सुमिरत एक बारा।उतरहि नरभव सिंधु अपारा।।"
तुमने राम के नाम की महिमा का अपमान किया है, जा तू गुहक चांडाल हो जा। निरपराधी बामदेव ने वशिष्ठ जी के चरणों मे गिर कर क्षमा मांगी। वशिष्ठ जी ने कहा ।मेरा श्राप तो मिटे गा नही, लेकिन तुझे उस जन्म में भी भगवान श्रीराम का आलिंगन प्राप्त होगा। और तुझे मुक्ति प्राप्त होगी। बामदेव ने प्राणों को त्याग दिया और त्रेता युग मे ही केवट के रूप में जन्म लिया और भगवान राम की अविरल निर्मल भक्ति को प्राप्त किया।
जानकी को देकर जिसे पाया जनक ने था,पाया पद वही लेकिन केवट ने क्या दिया? भैरव भरत बलि विभीषण ने त्याग किया, पाया पद वही त्याग केवट ने क्या किया? एक पद का चरण रज पा सकी अहिल्या पडी, पदोदक एक ही पद का विधाता ने ले लिया।।व्रह्म पद पादोदक , प्रकछालन व पाद रज, पाया न किसी ने जो केवट ने पा लिया।।
यह है इस केवट की विशेषता जो कही न कही छिपी रह गयी है।।
डॉ राकेश कुमार पांडेय