अंक6
अंक 6
स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर के बाद कारण शरीर को जानना भी अत्यंत आवश्यक है। कारण शरीर स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर का बीज है।इसी के कारण से स्थूल और सूक्ष्म शरीर का निर्माण होता है।जैसे आप के बीज में एक विशाल आम का वृक्ष विद्यमान होता है लेकिन वो अभिव्यक्त न होने से सुप्तावस्था में पड़ा रहता है। और वातावरण पाकर अभिव्यक्त हो कर एक विशाल आम का बृक्ष बन जाता है, वैसे ही मनुष्य शरीर के सभी तत्व इस कारण शरीर रूपी बीज में उपस्थित रहते है और वातावरण के प्रभाव में आते ही सूक्ष्म व स्थूल शरीर का रूप ले लेते है। सुप्त होने के कारण इसे अपने आत्मरूप का भी ज्ञान नहीं होता। न इसका कोई नाम होता है, न जाती होती है और न ही कोई रूप होता है। अभिव्यक्ति के बाद ही इसकी कल्पना की जा सकती है। जैसे आम के बीज में आम के पेड़ की जड़ ,शाखा तना, पत्तियां फल बौर सभी समाए हुए है, लेकिन वो व्यक्त नहीं है। उनके किसी रूप की कल्पना नहीं की जा सकती।लेकिन जैसे ही वो प्रकट हो जाते है उनका स्वरुप दृष्टिगोचर होने लगता है।यही अवस्था इस कारण शरीर की भी है।यह स्थूल और सूक्ष्म दोनों शरीरो को अपने में समाहित रखता है। जैसे ही वातावरण मिला ऐ प्रकट हो जाते है। फिर उसको नाम, रूप जाति इत्यादि सम्बोधन दिए जाते है।
मनुष्य शरीर में आत्मचेतना ही मुख्य है जो एक ही चेतन तत्व है।इस चेतन तत्व के अभाव में यह जड़ शरीर कुछ भी नहीं कर सकता। यह चेतना शक्ति भी तीन अवस्थाओ में रहती है। प्रथम अवस्था का नाम है जाग्रत अवस्था, द्वितीय अवस्था को स्वप्ना अवस्था और तृतीय को सुषुप्ती अवस्था कहा जाता है।
ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा जो विशेष अनुभव होता है उसे जाग्रत अवस्था कहते है। जाग्रत अवस्था में जो देखा सुना जाता है, उसकी सूक्ष्म वासना से निद्रा में जो दिखाई पड़ता है वह स्वप्ना अवस्था कही जाती है। और निद्रा के सुख का अहसास करने की अवस्था को सुषुप्ती कहा जाता है।
मनुष्य के शरीर का निर्माण पांच कोषो से हुआ है। इन्हें अ न्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय, और आनन्दमय कोष के नाम से जाना जाता है।
अन्न के रसो से निर्मित और उसी अन्न से बढ़ता हुआ यह अन्नरूपी पृथ्वी में समाप्त हो जाता है। यह स्थूल शरीर ही अन्नमय कोष है।
प्राण आदि पञ्च वायु (प्राण,अपान, व्यान, उदान और समान)और पांच कर्मेंद्रियो को मिलाकर प्राणमय कोष होता है।आत्मा इसी शक्ति की सहायता से शरीर में चेतना का संचार करती है।
मन और पञ्च ज्ञाननेंदियो को मिलाकर मनोमय कोष होता है।मन भी स्वयं आत्मा नहीं है, बल्कि आत्मा का एक उपकरण मात्र है।संसार का ज्ञान मन से ही होता है और आत्मा के ज्ञान का कारण भी मन ही बनता है।
बुद्धि और पञ्च ज्ञानेन्द्रियों को मिलाकर विज्ञानमय कोष बनता है।मन पर बुद्धि का नियंत्रण होता है। बुद्धि के अभाव में मन किसी निर्णय पर नहीं पहुँच सकता।
आनन्दमय कोष सबसे सूक्ष्म है।यह आत्मा के सर्वाधिक निकट होता है।जहाँ जहाँ आनंद की अनुभूति होती है वह आनंदमय कोष के कारण ही होती है। विषय जटिल है। किन्तु अध्यात्म मार्ग के साधक को इसका ज्ञान होना अति आवश्यक है। (शेष अगले अंक में।)
डॉ राकेश पाण्डेय
9926078000.
Saturday, 24 June 2017
कारण शरीर।
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प्राण और आत्मा मे क्या अंतर है। मृत्यु होने पर सूक्ष्म शरीर के साथ जीव का कर्म मन स्वभाव जाते हैं पर नया जन्म लेने पर पिछले का स्मरण क्यो नही होता।
ReplyDeleteप्राण और आत्मा मे क्या अंतर है। मृत्यु होने पर सूक्ष्म शरीर के साथ जीव का कर्म मन स्वभाव जाते हैं पर नया जन्म लेने पर पिछले का स्मरण क्यो नही होता।
ReplyDeleteकारण शरीर कितने तत्वों से निर्मित होता है
ReplyDeleteकारण शरीर 35 बीज भावो से उत्पन्न होता है - पंच ज्ञानेन्द्रिय,पंच कर्मेन्द्रिय,पंच तन्मात्र, और संक्षिप्त मे
Deleteदेखने लिए आप - योगी कथामृत बुक के पृष्ठ क्र• 557 पर देखे -श्री युक्तेश्वरजी का पुनरूथ्थान.......कारण शरीर के विषय मे दीर्घ जानकारी प्राप्त हो जाएगी।
बहुत ही उपयोगी जानकारी
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