Saturday, 24 June 2017

स्थूल शरीर 2


अंक 5
पिछले अंक में हमने  स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर, कर्मेन्द्रियाँ और ज्ञानेन्द्रियों का ब्याख्या की थी। इन इन्द्रियों का संचालन इनके पीछे छिपी हुई शक्ति से होता है।जिन्हें हम बिभिन्न देवताओ के नाम से जानते है।ऐ सभी देवता उस एक ही आत्म चेतना की शक्तियां है जो अपने अपने कार्य क्षेत्र को संभालते है।यदि ऐ शक्तियां न हो तो ऐ इंद्रिया निष्क्रिय हो जाती है। इन्द्रियों का संचालन और शक्रियता इन शक्तियो के द्वारा ही होता है।
जगत में पांच मुख्य तत्व है, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी। आकाश का गुण शब्द, वायु का स्पर्श, अग्नि का रूप, जल का रस और पृथ्वी का गन्ध है।इन पांचो के ज्ञान के लिए पांच ज्ञानेन्द्रियों का विकास हुआ। कान की विषय शब्द ग्रहण करना है जो आकाश का गुण है, इसके देवता का नाम दिशा है।त्वचा का विषय स्पर्श ज्ञान करना है इसके देवता वायु है।आँख का विषय रूप ग्रहण करना है और इसके देवता  सूर्य है। रसना अर्थात जिह्वा का विषय स्वाद ग्रहण करना है और इसके देवता वरुण है। और नाक का विषय गन्ध ग्रहण करना है और इसके देवता अश्वनी कुमार है। इनके समग्र रूप का ज्ञान मन को होता है और वही निर्णायक होता है।
इसी प्रकार कर्मेंद्रियो में प्रथम वाक् इन्द्रिय है जिससे विचारो की अभिव्यक्ति होती है।इसका देवता अग्नि है।अग्नि के तेज से ही बोलने का कार्य होता है। इस शक्ति के अभाव में वाणी मन्द हो जाती है, और अधिकता में व्यक्ति वाचाल हो जाता है।
दूसरी कर्मेन्द्रिय हाँथ है जिससे किसी वस्तु को ग्रहण किया जाता है।हाँथ के देवता इंद्र है। इंद्र के क्षीण होने पर हाँथ शक्तिहीन और आसक्त हो जाते है।
तीसरी कर्मेन्द्रिय पांव है जिसका कार्य चलना फिरना है।इसके देवता विष्णु है।जैसे विष्णु समस्त जगत को धारण किये हुए है,वैसे ही विष्णु शक्ति पाँव में प्रवेश करके सारे शरीर के भार को धारण किये हुए है।
चौथी कर्मेन्द्रिय गुदा है जो मल त्याग करती है।इसके देवता मृत्यु है।जगत में जिस वस्तु की आवश्यकता नहीं है, उसे मृत्यु देवता हटा देते है। यदि मृत्यु देवता मल को न हटाए तो शरीर अस्वस्थ हो जाएगा।
पांचवी कर्मेन्द्रिय उपस्थ यानी लिंग है जिसके देवता ब्रह्मा है। इस कर्मेन्द्रिय के द्वारासृष्टि की विकास प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाता है। मैथुनी सृष्टि के विकास के लिए यह इन्द्रिय कार्य करती है। ब्रह्मा जी की शक्ति लिंग में अवस्थित रह कर सृष्टि की रचना को आगे बढाती है।
इन इन्द्रियों का संचालन इन देवताओ की शक्ति से होता है।ऐ सभी देवता उस आत्म चेतना की ही शक्ति है जिसको जानने के उद्देश्य से यह मनुष्य जन्म प्राप्त हुआ है। सूक्ष्म शरीर की ऐ इंद्रिया ही स्थूल शरीर में व्यक्त हो कर कार्य करती है।
इस शरीर और सृष्टि की संरचना का विधिवत अध्ययन किये बिना साधक अध्यात्म के मार्ग पर नहीं चल सकेगा। इस लिए  अत्यंत सहज और सरल भाषा में इसे  लिखने का प्रयास किया गया है। शेष अगले अंक में।
डॉ राकेश पाण्डेय
9926078000

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