Saturday, 24 June 2017

स्थूल शरीर 1


अंक 4.
आत्म ज्ञान के बिना मुक्ति संभव नहीं है। और आत्म ज्ञान की प्राप्ति के लिए किया गया प्रयास ही ब्रह्म बिद्या है। इसके विधिवत ज्ञान के लिए ज्ञानियो द्वारा कुछ शब्दों का प्रयोग प्रचलन में लिया गया है , जिसको समझे बिना आगे की बाते समझ में नहीं आएगी।
गीता जी में अध्याय 13 श्लोक 1में भगवान् श्री कृष्ण ने इस शरीर को क्षेत्र कहा है- इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्य भिधीयते।इसका मतलब जैसे खेत में बोये हुए बीज में फल समय पर प्रकट होते है, वैसे ही इस शरीर में बोये हुए कर्मो के फल समय पर प्रकट होते है। अर्थात इस शरीर का अत्यंत ही महत्व है। रामायण जी इसी लिए कहती है, बड़े भाग्य मानुष तन पावा। शरीर के महत्व को समझने के लिए आइए कुछ बाते विधिवत विस्तार से समझते है।हमारा यह शरीर पांच तत्व आकाश, जल, पृथ्वी, अग्नि और हवा से निर्मित है।
यह जो दिख रहा है इसे स्थूल शरीर कहते है।यह पृथ्वी जल अग्नि आकाश और वायु का समूह है। इसे पंचभूत कहते है। यह उत्पन्न होता है, बढ़ता है और नष्ट हो जाता है।कर्मो के अनुसार यह सुख और दुःख को भोगता है।इस शरीर द्वारा किये गए कर्मो का परिणाम होता है जिसे वह भोगता है।इसलिए यह शरीर विकारी कहा गया है।यह शरीर आत्मा से भिन्न है।यह आत्मा नहीं है। इस शरीर में दो और शरीरो का वास् होता है जिसे सूक्ष्म शरीर और कारन शरीर कहा जाता है।
इस शरीर में ही पांच कर्मेन्द्रिया और पांच ज्ञानेन्द्रिया होती है।पांच प्राण, एक मन, और एक बुद्धि होती है।
स्थूल शरीर की पांच ज्ञानेन्द्रिया , पांच कर्मेन्द्रिया, पांच प्राण मन और बुद्धि को मिला कर सूक्ष्म शरीर कहा गया है।इन सत्रह कलाओ के समुदाय को सूक्ष्म शरीर कहा गया है।यह सूक्ष्म शरीर स्थूल शरीर की मृत्यु पर उससे अलग होकर सूक्ष्म रूप से विचरण करता है। और समय समाप्त होने पर पुनःस्थूल शरीर धारण कर लेता है।
कान , त्वचा, आँख, जीभ और नाक को ज्ञानेन्द्रिय कहा जाता है।
ऐ पांच ज्ञानेन्द्रिया सृष्टि में पाये जाने वाले पांच गुणों को भिन्न भिन्न प्रकार से ग्रहण करती है।किसी बस्तु का पूर्ण ज्ञान इन पांचो ज्ञानेन्द्रियों की सहायता से ही होता है।
इसी तरह इस शरीर में पांच कर्मेन्द्रिया है। वाणी, हाँथ, पाँव,गुदा, और लिंग।इन कर्मेन्द्रियों के द्वारा कर्म किये जाते है।
सूक्ष्म शरीर की ऐ इंद्रिया ही स्थूल शरीर में अभिव्यक्त हो कर कार्य करती है।
और तीसरा है कारण शरीर।यह कारण शरीर ही स्थूल और सूक्ष्म शरीर का बीज है। यह अभिव्यक्त न होने से सत असत कुछ भी नहीं कहा जा सकता। मनुष्य के शरीर की रचना वाले सभी तत्व इस कारन शरीर में विद्यमान रहते है, उचित वातावरण पाकर ही स्थूल और सूक्ष्म शरीर का रूप लेते है।

डॉ राकेश पाण्डेय
9926078000

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