संसार के हर साधक का एक ही उद्देश्य होता है परमात्मा की प्राप्ति। अपने अभीष्ट की प्राप्ति। अपने इष्ट से मिलन। सदगुरू की मदद के बिना ऐ संभव नहीं है।समस्या यह है की सदगुरू की शरण तक पहुंचे कैसे? नींव का मजबूत होना अत्यंत आवश्यक है। आत्मा को जानने के लिए इस शरीर की संरचना को जानना अत्यंत आवश्यक है। यह ज्ञान मार्ग अत्यंत कठिन मार्ग है।यह कृपाण की धार के समान है। थोडा जटिल और उबाऊ भी है। लेकिन इसके बिना भक्ति भी सुदृढ़ नहीं होती। नारद भक्ति सूत्र में तो यहाँ तक कहा गया है की आत्म ज्ञान के बाद ही भक्ति की शुरुआत होती है। प्रेम मार्ग में भी जहाँ रस विलास के साधना कीबात की जाती है वहाँ भी इस स्थूल शरीर को नगण्य मान कर ही चर्चा की जाती है। इस लिए इस शरीर और सृष्टि की संरचना को समझना अत्यंत आवश्यक है। इसके बिना किसी भी मार्ग में उत्थान नहीं होगा। गीता जी अध्याय 10 के श्लोक 10 और 11 में भगवान् ने तत्वज्ञान की महिमा को बताते हुए कहा की मेरे ध्यान में लगे ध्यानी और मझे प्रेमपूर्वक भजने वाले भक्त को वह तत्वज्ञान रूप योग देता हूँ जिससे वे मुझे ही प्राप्त होते है। उनके ऊपर अनुग्रह करने के लिए उनके अन्तः करन में मै स्वयं ही प्रकाशमय तत्वज्ञानरूप दीपक के द्वारा नष्ट कर देता हूँ।
' तेषां सतत युक्तानां भजतां प्रीतपूर्वकम।
ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्तिते।।
भगवान का इशारा सभी के लिए है की मार्ग कोई भी हो, लेकिन तत्वज्ञान जरुरी है। और उस तत्वज्ञान को जानने के लिए ही सदगुरू की शरण, सत्संग, शास्त्र का अध्ययन जरुरी है। संक्षेप में हम इतना ही बताना चाहेंगे की यदि थोड़ी कठिनाई भी महसूस हो तो भी परमात्मा के मार्ग पर चलने से रुको मत। न घर छोड़ने की आवश्यकता है, न बन जाने की जरूरत है।जगत में रहते हुए, जगत के सारे कार्यो को करते हुए अपने विवेक को स्थिर रखते हुए अपने आप को जानने का प्रयास, सद्गुरु की शरण लेकर गीता जी रामायण जी की वाणी को सदगुरु की वाणी मान कर अपने जीवन के उद्देश्य को पूरा करे। स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर यानि की अन्तःकरण (मन बुद्धि चित्त और अहंकार), कारण शरीर और आत्मा को जानने का निरंतर प्रयास करे। सफलता जरूर मिलेगी। न जग बदलेगा, न कोई कार्य बदलेगा, न आपका ऐ शरीर बदलेगा, न ऐ सृष्टि बदलेगी। जिस दिन गुरु कृपा से आत्मज्ञान हो जायेगा आपकी दृष्टि बदल जायेगी। फिर जिंदगी को जिना आसान हो जायेगा। और आप के जीवन से रोना धोना, शिकवा शिकायत, नफरत इत्यादि सब गायब हो जाएंगे। और आप स्वयं में एक अदभुत परिवर्तन देखेंगे। आप का जीवन शांति और आनन्द से भर उठेगा। (शेष अगले अंक में।)
डॉ राकेश पाण्डेय
9926078000
Saturday, 24 June 2017
साधक का उद्देश्य क्या हो?
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