Wednesday, 17 October 2018

पराभक्ति।

भक्ति कोई साधना नहीं है ज्ञान का आश्रय लेकर रहने की भी आवश्यकता नहीं है यह शादी वस्तु है यह स्वयं फल स्वरुप है भक्ति कर्म या किसी साधना के फलस्वरूप उत्पन्न नहीं होती एक संत के मतानुसार निमाज ने से प्रेम नहीं होता भाग्यवान साधक किस सौभाग्य से यह स्वयं ही आ जाती है यह नित्य सिद्ध वस्तु है साधना के द्वारा किस प्रकार पाया जा सकता है के द्वारा साधना के द्वारा अहम का नाश होता है चित्र शुद्धि होती है किंतु चित्त शुद्धि ईश्वर लाभ नहीं है प्रेम स्वरूप भगवान शिव ही कृपा कर भक्त के हृदय में प्रकाशित होते हैं यद्यपि साधना में ईस्ट को प्राप्त करने की सामर्थ नहीं है आप साधना होने पर उनकी कृपा के अनुभव की सामर्थ होती है उनकी कृपा धार होकर नित्य प्रवाहित होती है हम लोगों के द्वारा उसे ग्रहण करने की अपेक्षा है भक्ति कर्म और ज्ञान योग से श्रेष्ठ है वहां के उपाय स्वरूप ज्ञान की बात कही गई है वस्तु के स्वरूप ज्ञान को लक्ष्य नहीं किया गया है वस्तु का स्वरूप जो ज्ञान है ज्ञान और परा भक्ति एक ही वस्तु है जिस सत्य वस्तु को पाने के लिए योग ज्ञान आदि साधन पदों का अवलंबन किया जाता है बरा भक्ति वही वस्तु होती है

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