Sunday, 25 June 2017

क्यो प्रचार करे गीताजी का?

भगवान श्री कृष्ण ने अध्याय 18 श्लोक 68 में कहा है कि जो मुझमे प्रेम करके मेरे इस रहस्ययुक्त गीता शास्त्र को मेरे भक्तो में कहेगा वह मुझको ही प्राप्त होगा, इसमे कोई संदेह नही है। और अगले श्लोक में ये भी कहा है कि उससे बढ़ कर मेरा प्रिय कार्य करनेवाला मनुष्यो में कोई भी नही है; तथा पृथ्वी पर उससे बढ़ कर कोई मेरा प्रिय नही होगा।
यदि ये भगवान का कथन है तो हम क्यो ऐसा न करे?  भगवान का इतना प्रिय बनने की अभिलाषा किसमे नही होगी? जिसमें नही होगी उससे बड़ा मूर्ख इस दुनिया मे शायद ही कोई होगा।
बड़ी सीधी सी बात भगवान ने कही और समझ मे भी आ गयी और हम तैयार भी हो गए। लेकिन भगवान की बात समझने में थोड़ी कमी रह गयी, उन्होंने कहा ' य इमं परमं गुह्यं' अर्थात इस परम रहस्ययुक्त गीता शास्त्र। तो क्या गीता में रहस्य भी है ? अब भगवान इशारा कर रहे है तो जरूर कुछ तो बात होगी। तो इस रहस्य को कैसे जाना जाय? इस रहस्य को जानने के लिए ऐसे व्यक्ति को खोजना पड़ेगा जो इस को जानता हो। और उस व्यक्ति को ही भगवान ने गुरु का नाम दिया है। और गीताजी कई जगह ऐसे व्यक्ति के आचरण के बारे बताती है जिससे साधक को उन्हें पहचानने में परेशानी न हो। कभी योगी का नाम दिया, कभी सिद्ध पुरुष का नाम दिया तो कभी व्रहमज्ञानी का नाम दिया। और उस गुरु के पास कैसे जाना चाहिए, कैसे बैठने चाहिए और कैसे विनम्र हो कर प्रश्न करना चाहिए सब को विस्तृत रूप से व्याख्या की है। इन सब को जानने के लिए आप को गीता जी का अध्ययन करना चाहिए। और हाँ भगवान ने गीता जी मे उस गुरु को भी निर्देश दिया है कि इस रहस्य को ऐसे व्यक्ति के साथ कदापि चर्चा न करे जिसे तप भक्ति या अध्यात्म में रुचि न हो। अध्याय 18 श्लोक 67  देखे।

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