Monday, 26 June 2017

प्राप्ति में वाधा मन है

परमात्मा की प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा यदि कोई है तो वह आप का मनहै। क्रिया करते करते कुछ साधक उन क्रियायों से होने वाले चमत्कारों में उलझकर साधना से भटक जाते है और लक्ष्य तक नही पहुंच पाते। कुछ उन क्रियायों का ज्ञान प्राप्त कर दूसरे साधको से तर्क वितर्क में उलझ कर खुद को महांज्ञानी समझ बैठ जाते हैऔर लक्ष्य से दूर हो जाते है। साधन के रूप में कई जाने वाली क्रियाये साधना कहलाती है और इनका होना नितांत आवश्यक है । लेकिन ये उलझा भी देती है। इस लिए जागृत गुरु की शरण ले कर साधना करना उत्तम  है। साधना की हर क्रिया साधक को परमात्मा की तरफ ही ले जाती है, लेकिन जैसा कि भगवान तुलसीदास जी ने इशारा किया है ' इन्द्रिय द्वार झरोखे नाना, ता महँ सुर बैठे कर थाना।
आवत देखत विषय बहोरि,------।'  ये सुर साधक को किसिन किसी प्रकार से परमात्मा तक पहुंचने नही देना चाहते। आप को सुख दुख कष्ट लाभ हानि यश अपयश क्रोध लालच देकर काम क्रोध मोह लोभ को बढ़ा कर प्रसिद्धि देकर, चमत्कारी बना कर सिर्फ साधना से दूर कर देते है। इतिहास उठा कर देखे ऐसी हजारो घटनाए मिल जाएगी। ऐसे में यदि गुरु की शरण और नाम जप का सहारा रहे तो इनसे भी पार पाया जा सकता है। आप  ने देखा होगा कोई पेड़ से लटका हुआ है, किसी ने एक पाँव पर पांच साल से खड़े होने का रिकॉर्ड बना रखा है, किसी ने लोंगो को समोसा चटनी खिला कर सिद्धि दिखा दी कोई शास्त्रार्थ का दिग्विजयी पंडित हो गया है, ये सब आप को सिर्फ और सिर्फ जगत में समाज मे कुछ समयके लिए प्रसिद्धि दिला सकते है इनका परमात्मा की प्राप्ति से दूरी बन जाती है। भगवान अष्टावक्र ने कहा है कि अध्यात्म का मार्ग और प्राप्ति अच्छे से अच्छे पुरुषार्थ करने वाले को नपुंसक और अच्छे से अच्छे वक्ता को गंगा बना देता है  । गीता जी स्वयं भी इशारा करती है कि प्राप्त व्यक्ति को वेद शास्त्र से क्या प्रयोजन रह जाता है  । एक पीएचडी करने वाला व्यक्ति बहुत सारे गर्न्थो और पुस्तको को इकट्ठा करता है लेकिन पीएचडी की डिग्री मिलते ही वो सब बोझ बन जाते है।

शम, दम ,उपरति, तितिक्षा, श्रद्धा, समाधान ,जप , तप, योग  , ज्ञान ,वैराग्य,  विवेक सभी परमात्मा तक पहुंचाने की कड़ियाँ है। ये मदद करती है। लेकिन प्राप्ति तो गुरु कृपा से अनुभूति के द्वारा ही संभव है।
डॉ राकेश पांडेय
9926078000

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